ढाका यूनिवर्सिटी: बहुआयामी पहचान और पाकिस्तान के साथ नए संबंध
ढाका यूनिवर्सिटी बांग्लादेश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी है, जिसकी पहचान बहुआयामी रही है। इसका एक प्रमुख कारण भारत के प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ सत्येंद्रनाथ बोस हैं, जिनका योगदान विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय है। ढाका यूनिवर्सिटी अब पाकिस्तान के छात्रों को भी आने की अनुमति दे रही है, जो एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण निर्णय है। आइए इस निर्णय और सत्येंद्रनाथ बोस के योगदान के बारे में विस्तार से जानते हैं।
सत्येंद्रनाथ बोस का योगदान
सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म कोलकाता में हुआ था, जहां उन्होंने बीएससी और एमएससी की पढ़ाई की। 1917 में उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर और लेक्चरर के रूप में काम करना शुरू किया। 1921 में बोस ढाका यूनिवर्सिटी में रीडर बने और वहां फिजिक्स डिपार्टमेंट के हेड बने। बोस ने अपनी पीएचडी पूरी नहीं की, लेकिन आइंस्टाइन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनके पेपर को जर्मन में अनुवाद कर एक जर्नल में प्रकाशित किया। इसके बाद से बोस का नाम विज्ञान की दुनिया में चर्चित हो गया।
ढाका यूनिवर्सिटी और पाकिस्तान
1971 के पूर्वी पाकिस्तान में हुए जनसंहार के लिए माफी मांगने की मांग के दौरान 2015 में शेख हसीना की सरकार ने ढाका यूनिवर्सिटी में पाकिस्तानी छात्रों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन अब, बांग्लादेश ने इस पाबंदी को हटा दिया है और पाकिस्तान के छात्रों को आने की अनुमति दे दी है। यह निर्णय बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच संबंधों में एक नया अध्याय जोड़ता है।
फिजिक्स कॉन्फ़्रेंस और प्रतिभागियों के अनुभव
सात से दस नवंबर तक ढाका यूनिवर्सिटी में “सेंटेनियल सेलिब्रेशन ऑफ बोस-आइंस्टाइन स्टैटिस्टिक: अ लेगसी ऑफ ढाका” नामक फिजिक्स कॉन्फ़्रेंस का आयोजन किया गया था। इस कॉन्फ़्रेंस में भारत और पाकिस्तान दोनों के भौतिक विज्ञानी शामिल हुए थे। नोबेल विजेता विलियम डेनियल फिलिप्स और पाकिस्तान के प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी परवेज़ हुदभाई भी इस कॉन्फ़्रेंस में उपस्थित थे। हुदभाई ने बांग्लादेश और ढाका यूनिवर्सिटी का अपना अनुभव साझा किया, जिसमें उन्होंने बांग्लादेश के लोगों की प्रगतिशीलता और सहनशीलता की प्रशंसा की।
बांग्लादेश में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का अनुभव
परवेज़ हुदभाई ने ढाका यूनिवर्सिटी के भीतर मंदिरों और बौद्ध मूर्तियों की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में महिलाओं की अधिक भागीदारी दिखाई देती है, जो पाकिस्तान में कम देखने को मिलती है। हुदभाई ने बताया कि ढाका यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स हसीना विरोधी आंदोलन में शामिल थे और आरक्षण के मुद्दे पर नाराज थे।
सत्येंद्रनाथ बोस के ढाका छोड़ने का कारण
1940 के दशक में ढाका के हालात बिगड़ने लगे थे, जिससे सत्येंद्रनाथ बोस ने ढाका छोड़कर कोलकाता यूनिवर्सिटी में वापसी की। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच के संबंधों को देखकर हुदभाई ने कहा कि बांग्लादेश को पाकिस्तान से माफी मांगनी चाहिए और 1971 में हुए घटनाक्रम को सही तरीके से स्वीकारना चाहिए।
पाकिस्तान में बांग्लादेश को मान्यता
1971 में बांग्लादेश बनने के बाद, पाकिस्तान ने 22 फरवरी 1974 को बांग्लादेश को मान्यता दी थी। इस मान्यता के पीछे मुस्लिम देशों का दबाव था कि इस्लामिक दुनिया में एकता होनी चाहिए।
निष्कर्ष
ढाका यूनिवर्सिटी और बांग्लादेश के संबंधों में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो विज्ञान, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा। सत्येंद्रनाथ बोस का योगदान और पाकिस्तान के छात्रों के लिए खुलने वाले दरवाजे एक नए युग की शुरुआत कर सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: सत्येंद्रनाथ बोस कौन थे और उनका योगदान क्या था?
- उत्तर: सत्येंद्रनाथ बोस एक प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ थे। उन्होंने आइंस्टाइन के साथ मिलकर बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी का विकास किया।
प्रश्न 2: ढाका यूनिवर्सिटी में पाकिस्तानी छात्रों को अनुमति क्यों दी गई है?
- उत्तर: बांग्लादेश सरकार ने शैक्षिक आदान-प्रदान और संबंधों को सुधारने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया है।
प्रश्न 3: 1971 के जनसंहार के लिए पाकिस्तान से माफी मांगने की मांग क्यों उठी थी?
- उत्तर: 1971 के पूर्वी पाकिस्तान में हुए जनसंहार के लिए बांग्लादेश ने पाकिस्तान से माफी की मांग की थी।
प्रश्न 4: बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच के संबंध कैसे सुधर सकते हैं?
- उत्तर: शिक्षा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आपसी सहयोग के माध्यम से दोनों देशों के संबंधों में सुधार संभव है।