उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल ही में बड़ा विवाद खड़ा हो गया जब करणी सेना के सदस्यों ने समाजवादी पार्टी (एसपी) के सांसद रामजी लाल सुमन के आगरा स्थित आवास के बाहर प्रदर्शन किया। इस विरोध प्रदर्शन में एक बुलडोजर भी लाया गया, जिससे माहौल और गरम हो गया। करणी सेना और अन्य राजपूत संगठनों का यह प्रदर्शन रामजी लाल सुमन के एक बयान के खिलाफ था, जिसमें उन्होंने राजपूत शासक राणा सांगा को लेकर एक विवादित टिप्पणी की थी।
यह घटना न केवल समाजवादी पार्टी और राजपूत समुदाय के बीच तनाव को दर्शाती है, बल्कि इससे पूरे राजनीतिक परिदृश्य में हलचल मच गई है। भाजपा सहित कई अन्य दलों ने भी इस विवाद में अपनी प्रतिक्रिया दी है।
विवाद की जड़: रामजी लाल सुमन का बयान
विवाद की शुरुआत तब हुई जब समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने संसद में बयान दिया कि राणा सांगा ने मुगल शासक बाबर को भारत बुलाया था ताकि वह इब्राहिम लोदी को हरा सके। सुमन ने आगे कहा कि अगर भारतीय मुस्लिमों को बाबर के वंशज कहा जाता है, तो उसी तर्क से अन्य समुदायों को भी एक “गद्दार” के वंशज माना जा सकता है।
इस बयान ने राजपूत संगठनों को भड़का दिया, जिन्होंने इसे राजपूत इतिहास और वीरता पर हमला बताया। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा और करणी सेना ने इस बयान की कड़ी निंदा की और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए।
21 मार्च को राज्यसभा सत्र के दौरान, सुमन ने राणा सांगा को “गद्दार” कहा और दावा किया कि हिंदू समुदाय उनके वंशज हैं। इस टिप्पणी के बाद राजपूत समुदाय का आक्रोश और बढ़ गया, जिससे पूरे प्रदेश में प्रदर्शन होने लगे।
करणी सेना का उग्र प्रदर्शन और भाजपा की प्रतिक्रिया
रामजी लाल सुमन के खिलाफ सबसे बड़ा प्रदर्शन करणी सेना ने किया। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने उनके पुतले जलाए और उनसे माफी की मांग की। करणी सेना के सदस्य उनके घर के बाहर बुलडोजर लेकर पहुंचे, जो कि एक बड़े विरोध प्रदर्शन का संकेत था।
भाजपा ने इस विवाद पर तुरंत प्रतिक्रिया दी। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सुमन के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि राणा सांगा एक महान योद्धा थे, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने इसे इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की साजिश बताया।
समाजवादी पार्टी की दुविधा: बचाव और अंदरूनी मतभेद
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सुमन का बचाव किया और कहा कि उनके बयान ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हैं। हालांकि, एसपी के भीतर ही इस बयान को लेकर मतभेद देखने को मिले।
समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह ने सुमन के बयान से खुद को अलग कर लिया और कहा कि पार्टी इस तरह के विचारों का समर्थन नहीं करती। उन्होंने यह भी कहा कि राणा सांगा एक वीर योद्धा थे और उन्हें “गद्दार” कहना अनुचित है।
इस विवाद ने समाजवादी पार्टी को असमंजस में डाल दिया है। पार्टी को अपने परंपरागत वोट बैंक और राजपूत समुदाय के गुस्से के बीच संतुलन बनाना होगा।
इतिहास पर विवाद: क्या सच में राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था?
रामजी लाल सुमन का दावा कि राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था, एक ऐतिहासिक विवाद का विषय रहा है। बाबर की आत्मकथा “बाबरनामा” में यह उल्लेख मिलता है कि उन्हें भारत आने का न्योता दिया गया था, लेकिन यह निमंत्रण 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई के बाद आया था, जब बाबर पहले ही भारत में अपनी सत्ता स्थापित कर चुका था।
कई इतिहासकारों का मानना है कि पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी ने बाबर को इब्राहिम लोदी के खिलाफ मदद के लिए बुलाया था, न कि राणा सांगा ने। इसके अलावा, राणा सांगा ने पहले ही इब्राहिम लोदी के खिलाफ कई युद्धों में जीत दर्ज की थी, जिससे यह संदेह पैदा होता है कि उन्हें बाबर की सहायता की जरूरत क्यों पड़ी होगी।
राणा सांगा और बाबर के बीच संबंध कितने घनिष्ठ थे, यह इतिहासकारों के लिए आज भी शोध का विषय बना हुआ है। लेकिन यह स्पष्ट है कि राणा सांगा बाद में बाबर के विरोध में खड़े हुए और 1527 में खानवा की लड़ाई में उनसे लड़े।
करणी सेना की भूमिका और उसकी राजनीतिक ताकत
करणी सेना, जो इस विवाद में सबसे आगे रही, 2005 में एक राजपूत संगठन के रूप में बनाई गई थी। शुरुआत में यह संगठन जातिगत आरक्षण के मुद्दों पर सक्रिय था, लेकिन बाद में इसने राजपूत इतिहास और संस्कृति से जुड़े मामलों पर हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।
2008 में करणी सेना ने फिल्म “जोधा अकबर” का विरोध किया था, जबकि 2017 में “पद्मावत” फिल्म के खिलाफ बड़े स्तर पर हिंसक प्रदर्शन किए थे।
उत्तर प्रदेश में करणी सेना की राजनीतिक स्थिति भी काफी दिलचस्प रही है। 2024 के आम चुनावों में, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजपूत समुदाय में भाजपा के खिलाफ नाराजगी देखी गई। मुजफ्फरनगर में आयोजित “स्वाभिमान महापंचायत” में करणी सेना के नेताओं ने भाजपा के बहिष्कार का आह्वान किया था। इस घटनाक्रम ने यह दिखाया कि करणी सेना अब केवल एक सांस्कृतिक संगठन नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति भी बन चुकी है।
रामजी लाल सुमन: कौन हैं वह और क्यों हैं विवादों में?
रामजी लाल सुमन समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं। 2023 में उन्हें राज्यसभा भेजकर अखिलेश यादव ने दलित समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया था।
वह चार बार फिरोजाबाद से लोकसभा सांसद रह चुके हैं और समाजवादी पार्टी के पुराने नेताओं में से एक माने जाते हैं। उन्होंने सामाजिक न्याय और दलित अधिकारों से जुड़े कई मुद्दों पर आवाज उठाई है।
लेकिन अब उनके बयान ने समाजवादी पार्टी के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है।
राजनीतिक परिणाम और भविष्य की संभावनाएं
इस विवाद ने समाजवादी पार्टी को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है। एक ओर अखिलेश यादव अपने सांसद का बचाव कर रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर राजपूत समुदाय और भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बना रहे हैं।
इसका राजनीतिक असर आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां राजपूत मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
करणी सेना इस मुद्दे के जरिए अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत कर सकती है, जबकि भाजपा इस विवाद को समाजवादी पार्टी के खिलाफ एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।
संभावना है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा और तूल पकड़ेगा और उत्तर प्रदेश की राजनीति में नए समीकरण बना सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. रामजी लाल सुमन ने ऐसा क्या बयान दिया जिससे विवाद हुआ?
रामजी लाल सुमन ने संसद में कहा कि राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था, जिससे राजपूत संगठनों में आक्रोश फैल गया।
2. करणी सेना ने रामजी लाल सुमन के बयान पर क्या प्रतिक्रिया दी?
करणी सेना ने उनके घर के बाहर प्रदर्शन किया, पुतले जलाए और उनसे माफी की मांग की।
3. क्या सच में राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था?
इतिहासकार इस पर मतभेद रखते हैं। कुछ के अनुसार दौलत खान लोदी ने बाबर को बुलाया था, न कि राणा सांगा ने।
4. समाजवादी पार्टी ने इस विवाद पर क्या प्रतिक्रिया दी?
अखिलेश यादव ने सुमन का समर्थन किया, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने उनके बयान से दूरी बना ली।
5. क्या इस विवाद का आगामी चुनावों पर प्रभाव पड़ेगा?
हां, राजपूत समुदाय की नाराजगी से समाजवादी पार्टी को नुकसान हो सकता है, जबकि भाजपा इसे राजनीतिक मुद्दा बना सकती है।